*कमी *
कलम घिसाई: एक मित्र ने पूछा यार मुझमे कोई कमी हो तो बताओ?
मैंने मित्र से पूछा कि ऑस्ट्रेलिया की कमी बताओ।
उसने बोला यार मैं आस्ट्रेलिया गया ही नहीं तो कमी कैसे बताऊं। मैंने बोला नेट पर पढ़ लो ओर फिर बताओ ।उसने नेट पर पढ़ा और कुछ कमी ,अच्छाई बता दी। फिर मैंने उसको बोला चल केतु ग्रह की कमी बताओ? वो बोला भाई यह तो नेट पर भी नहीं मिलेगा ।मैंने बोला मिल जायेगा थोड़ा बहुत।।
फिर बोला क्या करना यार?
मैं बोला पगले कमी उसमे होती है जो नकल होती है। या जो किसी दूसरे के पैमाने से तोली जाती है। मौलिक सृजन में कभी कोई कमी नहीं होती वह अद्वितीय होता है ,फिर कोई उसे अच्छा कहे या बुरा। तो बात समझ आई..। तुम ईश्वर का एक नायाब सृजन हो ,तुम्हारे अंदर कमी या अच्छी चीज़ को तलाशने का काम स्वयम्भू ज्ञानी कर सकते है ,भाई मैं नहीं।
कोपैराइट मधुसूदन कलम घिसाई,
अटरू जिला बारां राजस्थान