कभी सोचा हमने !
कभी सोचा हमने !
कभी सोचा हमने !
सूखे को संकट क्यों’ आया ?
कभी जाना हमने !
प्रकृति ने कहर क्यों ढाया ?
कभी समझा हमने !
भूकंप से धरातल क्यों थर्राया ?
कभी देखा हमने !
जलस्तर इतना नीचे क्यों आया ?
कभी सुना हमने !
महापुरुषों ने जो हमें समझाया।
कभी माना हमने !
वेदों ने जो हमें बताया।
अब जाना हमने,
बहुत खोया व थोड़ा ही पाया।
अज्ञानता में हमने,
प्रकृति-संतुलन समझ न पाया ।
– डॉ० उपासना पाण्डेय