*कभी नहीं देखा है जिसको, उसकी ही छवि भाती है 【हिंदी गजल/गीति
कभी नहीं देखा है जिसको, उसकी ही छवि भाती है 【हिंदी गजल/गीतिका 】
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(1)
कभी नहीं देखा है जिसको, उसकी ही छवि भाती है
जिससे कभी नहीं मिल पाए, याद उसी की आती है
(2)
यह किताब के पढ़ने वाले, भला उसे क्या जानेंगे
हमसे पूछो रूह इश्क में, भर कैसी मस्ताती है
(3)
पूरनमासी के चंदा को , जब भी मैने देखा है
याद न जाने कौन जन्म की, उड़कर आ ही जाती है
(4)
बारिश बादल सरिता पर्वत से कुछ गहरा रिश्ता है
इनकी खुशबू एक नशे-सी, बनकर मन पर छाती है
(5)
आँख बन्द कर जब भी प्रियतम, मैने तुझे पुकारा है
छमछम करती आहट तेरी, मस्ती भर-भर लाती है
(6)
जब भी तुम्हें बुलाऊँ प्रियतम, दौड़े-दौड़े आ जाना
अगर नहीं आते हो तुम तो, तबियत फिर घबराती है
(7)
बरसों पहले चली गई माँ ,लेकिन अब भी लगता है
माँ की गोदी में लेटा हूँ, माँ ही लोरी गाती है
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रूह = आत्मा
इश्क = प्रेम
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर( उत्तर प्रदेश )
मोबाइल नंबर 99 976 154 51