कभी खुद से भी तो बात करो
कुछ खोना है कुछ पाना है,
आये हैं तो एक दिन जाना है।
अति गर्व भरी न औकात करो,
कभी खुद से भी तो बात करो।
संसार को तो है खुब जाना,
खरा खोटा भी है पहचाना।
कोई बोल लगी हो दिल को छुई,
क्या कभी स्वयं से बात हुई,।
चलो निज को एक सौगात करो,
कभी खुद से भी तो बात करो।
खुद से पूंछो क्यों पगला है,
जबकि धन गाड़ी बंगला है।
शोहरत है ओहदा मान भी है,
दस लोगों से पहचान भी है।
मेहनत चाहे दिन रात करो।
कभी खुद से भी तो बात करो।
पित माता भगनी भाई हैं,
सुत बहु धिआ व जमाई हैं।
घर में एक सुंदर पत्नी है।
सबकी दुनिया बस इतनी है।
इन सब पर चहे इतरात करो,
कभी खुद से भी तो बात करो।
दुनिया में क्यों हैं बौराये,
कभी सोचा जग में क्यों आये।
कुछ वक्त काढ़ कर रब से प्यार,
मानुष जामा नहीं बार बार।
उठो सार्थक अपनी गात करो,
कभी खुद से भी तो बात करो।
सतीश सृजन, लखनऊ