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2 Feb 2019 · 1 min read

कभी‌ गौर से देखा नहीं

कभी गौर से देखा नहीं
उन सड़कों पे वापस लौटकर
जहां से रोज गुजरते थे
घरौंदे से तालीम को लेने
और तालीम को बोझा में भर
जब वापिस लौटते

तो कभी – कभार अकेले हुआ करते थे
तब आंखे खोलकर चलते हुए ख्वाबों को देखना
और एक अलग सी बेचैनी को अपने अंदर ठहरा देना
ये खुशनसीबी एहसास होता था

जब घर तक ऐसे ही ख्यालों में डूबते जाते थे
तब रास्तों पर गम दीदार कम हुआ करते थे
और कभी कभी थोड़ी मुस्कान को छुपाने में
थोड़ी और मुस्कान को भर लेना
ये अपनी ही दुनिया का असर होता था

जब उन रास्तों पर
जहा से रोज निकलते थे
उन सड़कों का
मिजाज़ याद आता है
जो जगह जगह एक गंध को लिए होता है

जिन पे चलने का मेरा ढंग
मेरे अकेलेपन को कब छु गया
कभी गौर से देखा नहीं ।

Language: Hindi
1 Like · 452 Views
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