कब मिलोगी मां…..
तुम बहुत याद आती हो मां!
घर की देहरी पर खड़ी,हम सबकी बाट जोहती
तुम्हारी निगाहें,
शाम को घर वापस लौटते ही
तुम्हारा स्नेहसिक्त आलिंगन
मानो दिन भर की थकान को चूर-चूर कर देता
तुम मां थी और मैं बेटी
आज मैं मां हूं, स्थिति और स्थान बदल गये है मां।
बच्चों की प्रतीक्षारत आंखें
मुझमें नई ऊर्जा का संचार तो करती हैं
पर-
चाय पियोगी या कुछ खाने को लाऊं
ऐसी मनुहार कोई नहीं करता मां,
बीमार होने पर चारपाई के सिरहाने बैठ
बार-बार कभी माथा सहलाती
घबराहट में कभी नज़र उतारती
ज्वर की तपिश दूर करने को अब
कोई आंचल से हवा नहीं करता मां
मायके से जाते वक्त
आशीर्वाद और नसीहतों की पोटली के साथ
चोरी से मुट्ठी में अब नोट
कोई नहीं देता मां
जानती हूं कि तुम अब भी
दूर से ही सही पर
मेरी फिक्र करती हो,
त्यौहार हो या अतिथि सत्कार
कुछ भूला हमेशा याद दिला देती हो मां
हर सुख –दुःख में,
रसोई से लेकर मेरे संस्कारों में
पूजा, वंदना से लेकर तुलसी के चौरे तक
तुम्हें ढूढ़ती हूं मांssssss
फिर कब मिलोगी मां!