“कब आओगे “
मन के सूने कोठर में कब आओगे ,
गहरी स्याही रात सजी है,
जुगनू से चमके है मन के दर्पन ,
गीले मृद में सने सूखे पतझर,
द्वार देहरी पर बैठी हूँ कब आओगे,
मन में तो हलचल मची है,
कब तक निहारू स्याह गगन,
टूटे मनकों में जुड़े नव कोंपल,
स्वर विहीन हो आवाज दूँ कब आओगे।
…निधि…