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25 Oct 2022 · 1 min read

कफस में जिन्दगी ना सांस ए आजादी लेती है।

तन्हा जिंदगी साथ चलने को हमनवां मांगती है।
दे जो पल सुकूँन के ऐसा इक रहनुमा चाहती है।।1।।

बंजारगी में अब तक ये बागवां जिंदगी बीती है।
किसी के दिल में बसने को अब मकां चाहती है।।2।।

कफस में जिन्दगी ना सांस ए आजादी लेती है।
ख्वाबो में उड़ने को बनना अब परिंदा चाहती है।।3।।

तड़प कर देखो तो कैसे ये रेज़ा रेज़ा हो रही है।
बंजर जमीं कब से इक आबे आसमां मांगती है।।4।।

कमबख्त नींद भी ना आती है कि ख्वाबों में मिलों।
मोहब्बत अब कोई फासले ना दरम्यां चाहती है।।5।।

किस्मत भी जुगनू के जैसे जानें कब चमक जाए।
असर लाने को खुदाई बस इक दुआ चाहती है।।6।।

ताज मोहम्मद
लखनऊ

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