कफन
हम तो जमाने के हर रंग में रंग गये।
जैसा उसने बनाया वैसे ही बन गये।।
हम तो चाहते थे चैन और अमन का माहौल।
दोनों तरफ ही तीर मगर दुश्मनी के तन गये।।
चाहा बहुत था कुछ हम भी कहेंगे, करेंगे।
जब कुछ न कर सके तो शायर बन गये।।
हसीं बहुत हैं दुनिया के ख्वाब “कंचन” मगर।
साथ जब भी गये तो सिर्फ कफन गये।।
वर्ष :- २०१३.