कन्यादान क्यों और किसलिए [भाग ७]
फिर भी मैं आपसे पूँछती हूँ पापा,
क्यों न इस रस्म से इनकार किया ।
क्यों समाज की कठपुतली बन,
आपने मेरा कन्यादान किया।
मैं फिर आपसे पूछती हूँ पापा !
ऐसे रस्म रिवाज का क्या?
जिसमें सबका का दिल दुखे,
ऐसे कोई दान का क्या?
ऐसा कन्यादान का क्या?
आप कहते हो मेरे पापा
शादी दो दिलों का बंधन है।
इस बंधन में दोनो का
मान बराबर का होता है।
फिर शादी जैसे पवित्र बंधन में,
इस रस्म का क्या काम है,पापा
और इस रस्म निभाने के बाद
क्या दोनो का मान बराबर
का रह जाता है!
आपने कभी यह सोचा है पापा ,
क्यों बेटी समाज में दुर्गा का
रूप मानकर पूजी जाती है,
और उसी समाज में क्यों
नारी अबला रूप कहलाती है?
एक बार नही,सौ बार सोचना
इस बेटी से नारी बनने के सफर में,
कहाँ,कब हमसे क्या भुल हुई ?
कहाँ बेटी पर चोट हुआ !
और कहाँ नारी अबला रूप हुई?
एक बार जरूर सोचना पापा
यह कैसा था बेटी पर किया गया प्रहार
जो अपनों के हाथों ही करवाया गया था
इस रस्म नाम पर बेटी के आस्तित्व पर वार!
अपनों के इस वार से बेटी की शक्ति
ऐसे छिन – छिन होकर टूट गई।
वह ऐसी टूटकर बिखरी पापा
वह आज तक खुद को समेट नही पाई है !
उस चोट का दर्द ऐसा था पापा
बेटी आज तक नारी बनकर,
अपने लिए खड़ी नही हो पाई है,
और कहाँ आज तक वह पापा
अपने हक के लिए वह लड़ पाई है!
अपनों से मिला हुआ
यह ऐसा मीठा प्रहार था
बेटी दुर्गा के रूप से सीधे नारी बनकर
अबला का रूप हो गई पापा।
मेरा मानना है कि पापा
जिसने भी यह प्रथा शुरू की होगी ,
निश्चय ही वह नारी शक्ति से
बहुत डरा होगा।
वह कोई कायर , कोई बुजदिल,
कोई कमजोर रहा होगा।
जिसने नारी शक्ति को कम करने के लिए,
इस प्रथा का साजिश रचा होगा,
अपनो के हाथों अपनो पर
इस प्रथा के जरिए प्रहार करवाया होगा।
और इस तरह करके उसने
नारी की शक्ति पर चोट किया होगा।
ताकि कोई भी नारी
न अपनों के खिलाफ लड़ सके ,
न ही आवाज उठा सके,
और वह अबला रूप में बनी रह सके।
काश पापा,
आपने कन्यादान का यह
रस्म न निभाया होता,
मैं यू ही तिल- तिल कर न मरती,
मै भी जीती स्वाभिमान से।
यू न अपना जीवन हमें,
दुख में बिताना पड़ता।
यू न हमें कभी मरना तो,
कभी धरती में समाना पड़ता।
मेरा यह रूप अबला न होता,
मैं भी दुर्गा रूप में होती ।
न इतना कमजोर मैं होती
न डर-डरकर जीती मैं पापा।
एक बार नही, सौ बार सोचना
मेरे इन प्रश्नों का उत्तर
आखिर बेटी से नारी बनने के सफर में
हमसे कहाँ क्या कैसे चुक हुई।
कैसे पापा बेटी दुर्गा से सीधे नारी बनकर अबला का रूप हो गई और
अपनी सर्वस्य शक्ति वह अपनो से हार गई
एक बार जरूर सोचना पापा!
इस कन्यादान के रस्म के लिए।
~अनामिका