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31 Mar 2022 · 1 min read

कदम

चल पड़े हैं मेरे कदम, थी एक अनजानी सी राह।
सफर ये सुहाना होगा, मन में थी भोली सी चाह।।

चलते चलते थक से गये, रुके पेड़ की छांव में।
अहसास दर्द का हुआ तो, कांटे चुभे थे पांव में।।

होले से जब मैंने हटाया, चुभे कांटों को पांव से।
खून रिसने लगा धीरे धीरे, मिट्टी से सने पांव से।।

दर्द का अहसास कम हुआ, आंख भारी होने लगी।
पेड़ से सर टिकाया तो, नींद मुझको आने लगी।।

धूप भी तेज थी तो मंद मंद हवा चल रही थी।
तपिश का अहसास भी कुछ कम कर रही थी।।

थके मुसाफिर को कोई खजाना मिल गया हो जैसे।
बड़े सुकून की नींद थी ये ना भय ना फिक्र हो जैसे।।

Language: Hindi
1 Like · 120 Views
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