कदम बढ़ाए चलो
प्रेमचंद की ‘कफ़न’ की सच्चाई
इस युग की है कहानी,
जानवर से बदतर बन गया आदमी
देख पछताता खुदा आसमानी ।
रंग जमाई बच्चन की ‘मधुशाला’
पढ़कर सभी हो जाते मतवाला,
कवि थे वह ऐसे आला
सबका खोले बंद दिमागी ताला ।
नंगा-भूखा भिक्षुक ‘निराला’की
आज भी सेंकड़ों सड़क पर बसते,
सरकार हमारी रोटी दे न पाती
पर आश्वासन उनको मुफ्त देते ।
प्रसाद कहते थे बढ़े चलो बढ़े चलो
विदेशी शत्रु से देश आजाद कराओ,
मैं कहता हूँ सुनो ध्यान से
लड़ने अपने ही देशी लुटेरों से
आगे बढ़ो डटे रहो
कदम तुम बढ़ाए चलो बढ़ाए चलो।