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20 Jan 2017 · 1 min read

कथा के बैंगन

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कथा बाँचते एक दिन ** पंडित गोप कुमार
बैंगन के अवगुन कहे**मुख से बारमबार
बडी मुसीबत तब हुई** जब घर पहुँचे आय
पंडितानी ने शुद्ध मन ** खाना दिया लगाय
आग- बबूला हो गये ** थाली रहे निहार
भाग्यवान बैंगन बिना** खाना सब बेकार
भागवान बोली तभी ** ठहरे आप सुजान
अब बैंगन घर ना बनें ** ऱखूँ कथा तव मान
घर के बैंगन और है** कथा व्यथा के और
इतना भी समझी नही** करती क्यूँ बरजोर
समझ गयी सब बात मै ** कही अनकही खास
समझी तो मै आज हूँ** कथनीं तुलसी दास
कि
पर उपदेश कुशल बहुतेरे** जे आचरहि ते नर न घनेरे
गोप कुमार मिश्र

Language: Hindi
889 Views
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