“कठिन दौर”
इस कठिन दौर से गुजर रहे हैं हम।
अस्पतालों में शैया नहीं हैं ऑक्सीजन सिलेंडर हो गए कम।
खामोश हो गईं जाने कितनी जिंदगियां।
मिट गए सिंदूर उजड़ गईं माथे की बिंदियां।
शमशान के कोने कोने पर जल रही हैं चिताएं।
समीर सोच तू कैसे इन परेशानियों को हम मिटाएं।
दूर-दूर तक खामोशियों के अनेकों मेले हैं।
जिनके अपने बिछड़ गए वह सचमुच बहुत अकेले हैं।
चारों ओर बढ़ रहा है घोर अंधकार।
इस त्रासदी में भी कमजर्फ कर रहे हैं दवाइयों का काला बाजार।
जो नदियां हमारा श्रजन करती हैं उनमें सड़ रही हैं लाशें।
जिनको दी है जिम्मेदारियां हमने वह सिर्फ देख रहे हैं तमाशें।
हे महेश्वर समीर करता है वंदना तू दया कर।
अपने आलोकित प्रकाश से इस दुर्भाग्य चक्र को तू नष्ट कर।
जिनको तूने अपने पास बुलाया उनको चरणों में स्थान दे।
जिन घरवालों को वह छोड़ कर आए उनको साहस दे।
सारे जग पर छाया हुआ मिटा दे तू अंधकार।
हे प्रभु तू करता रहे अपनी करुणा की हम पर बौछार।
“”समीर””