और इच्छा हो जाती है
मैंने जिंदगी से पूछा
अरे तू इतनी रूखी रूखी सी क्यों है?
इतने सुख पाने के बाद भी
तू इतनी सुखी सुखी से क्यों है ?
वह कौन सी तेरी लालसा है
जो अधूरी रह गई है।
जरा बता दे इतना मुझको
ऐसा और क्या दे दूं तुझको ।
जिससे हो जाए हरी-भरी तू
और चैन मिल जाए मुझको ।
प्यारी जिंदगी बोली मुझसे
और कुछ ना देना मुझको ।
मुझको लेने की आदत पड़ी है
यह कभी ना जाती है।
कितना भी चाहे दे दो मुझको
और इच्छा हो जाती है।
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’