औरत की हँसी
कोई औरत यदि हँस रही है
तो जरूर कोई मार्के की बात होगी, अच्छी बात होगी
यह औरत के पक्ष की बात हो सकती है
मर्द पर उनकी जीत की
जरूरी अभिव्यक्ति भी हो सकती है
हो सकती है यह
गैरजरूरी स्त्री-शर्म को हँसी में उड़ाने की
हँसी भरी स्वच्छंद अभिव्यक्ति
इस अभिव्यक्ति में वे
खुदमुख्तारी का मुनादी करती और परचम लहराती हो सकती हैं
मगर जब वर्णोपरि कोटि की स्त्रियां हँस रही हों
आपस में हँस रही हों
या कि अपने मर्दों के साथ हँस रही हों
तो
अच्छी बात नहीं भी हो सकती है जबकि
कि उनकी यह बात किसी स्त्री विरुद्ध बात भी हो सकती है बेशक!
एक पुरुषसत्तात्मक मर्द से कम मर्द नहीं होतीं बाज औरतें
दलित–वंचित स्त्रियों को बरतते हुए।