ओस बिंदु
रजनी के अश्रु कणों के उपवन,
प्रणयानिल के प्रस्वेद्य भ्रमर।
तृण तुहिन के आशा का संचय।
शशि के रश्मिरथी पवि मनोहर।।
रवि रश्मियों के विकर्षक मधुकण ,
अवनी तल के शुचि भूप।
विरही रजनी के विस्मृत आभूषण,
तुम देवों के प्रसून अनूप।।
या तुम रात्रि के सखी के प्रेमी,
जिसे ढूंढते हो तुम निशिदिन।
वह देखा तुम्हें क्या छिप जाती है,
डरकर या तुम्हें समझ कर हीन।।
तुम तो अति पवित्र कुलीन हो,
हो अवनी पर स्वर्ग के मेहमान।
करूं क्या तुम्हारे हित मैं बातें,
तुम स्वयं साध्य प्रमेय प्रमाण।।
जगन्नियंता के प्रमुदित प्रहरी तुम,
करने आए विश्व का अनुलेख।
पाप पुण्य का ब्यौरा रख तुम,
जा उन्हें सुनाते पुलक अनेक।।
आओ ऐ मनोहर विश्व निधि,
मुझे ले चलो अपने ही संग।
कितना रुचिर है देश तुम्हारा,
देखूं आज वहां भी भ्रू भृंग।।
वहां चल सुधा का पान करें हम,
हो जाऊं तुमसा रश्मिमय विस्तीर्ण।
पाकर के फिर दिव्य गुणों को,
होऊंगा तब अवनी पर अवतीर्ण।।
पुलक गात नयनों में लेकर,
आज बनूं मैं विशद विमान।
मधुपायी मैं मधुबाला का,
मुझे मिली मधु ले अनजान।।
प्रेम प्रणय के शक्तिपुंज तुम,
शशि किरणों के तुहिन प्रसून।
शाश्वत प्रेम की व्याख्या करने,
आते यूं जग में करुणा अरुण।।