ए वतन हमें तुम पर नाज़ है ..
ए वतन ! हमें तुम पर नाज़ है ,
के तेरी धरती पर शूरवीरों ने जन्म लिया है ।
मगर अफसोस इस बात का है ,
इसी धरती पर कायरों ने जन्म लिया है।
हमारा मस्तक गर्व से ऊंचा हो जाता है ,
तेरी धरती पर महान देशभक्तों ने जन्म लिया है।
मगर शर्म से फिर झुक जाता है ,
इसी धरती पर गद्दारों ने भी जन्म लिया है।
हम खुशी से झूम जाते है जब कोई तेरे प्रेम में ,
तेरी शान में भक्ति रस से भरे गीत लिखता है ।
मगर फिर उन लोगों पर क्रोध भी आता है ,
जो तेरे विरोध में नारे लगाता है ।
नाज़ तो हम फिर भी करते है ,और सदा करते रहेंगे ,
क्योंकि मेरे देश जैसा देश सारे जहां में नहीं है ।
अब हीरे की कद्र तो जोहरी को मालूम होती है ,
वो क्या कद्र करेगा जो इंसान ही नही है।
यह विश्व अगर गुलशन है तो तुम उसमें अदद ,
खुशनुमा गुलाब हो ।
और गुलाब के साथ कांटे तो होते ही है।