#कैसा जमाना आया #
कैसा जमाना आया देखो,
अपने अपनों से ही दूर हुए ।
बेशर्मी का पहना चोला,
संस्कारों को भूल गए ।
पहले हर रिश्ता दिल का था,
सब साथ में मिल-जुल रहते थे।
अब रिश्ते तो बस नाम के हैं,
रिश्तों के नाम पे धोखा हैं।
कैसा जमाना आया देखो,
अपने अपनों से ही दूर हुए ।
अब घर में ही बिसात बिछी
सब इक दूजे से लड़ते हैं,
एक दूसरे का गला काटने को,
तत्पर सब रहते हैं।
कोई नहीं यहां पे अपना,
सब मतलब के रिश्ते हैं।
मतलब की साथी दुनिया है,
बस यही कहावत सच्ची है।
कैसा जमाना आया देखो,
अपने अपनों से ही दूर हुए।
मां-बाप की कोई फ़िक्र नहीं,
सब अपनी -अपनी करते हैं।
बच्चों के लिए सब कुछ त्यागा,
वो बच्चे ही आंख दिखाते हैं।
दुनियां की चौका- चौंध में हम
संस्कारों को ही भूल गए
कैसा जमाना आया देखो,
अपने अपनों से ही दूर हुए ।
भाई भाई से दूर हुआ,
गैरों से बातें होती हैं।
घर का भेदी लंका ढाए,
बस यही कहावत सच्ची हैं।
रामायण से ए तो सीखा
पर राम के त्याग को भूल गए
कैसा जमाना आया देखो,
अपने अपनों से ही दूर हुए।
रूबी चेतन शुक्ला
अलीगंज
लखनऊ