एहसास
कितना अजीब है ना!
लोग रोज़ आगे बढ़ रहे हैं!
तरक़्क़ी कर रहे हैं!
नौकरी-पेशे में!
ज़ेवर-जायदाद में!
नाते-रिश्तेदार में!
बाज़ार-कारोबार में!
शर्त बस इतनी है,
क़ुर्बानी अपनों की देनी होगी!
ख़त्म अहसासों को करना होगा!
मारना अपनेपन को होगा!
मोह को मिटा कर ‘माया’ के पीछे भागना होगा!
ग़लत कहते हैं लोग, “सब मोह-माया है।”
प्लास्टिक के दिलों में मोह का तो कब का दम घूंट चुका है!
इस आर्टिफिशियल दुनिया में अब हर तरफ माया ही माया है!
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