*जूते चोरी होने का दुख (हास्य व्यंग्य)*
किताब के किसी पन्ने में गर दर्दनाक कोई कहानी हो
गम की बदली बनकर यूँ भाग जाती है
ये भी क्या जीवन है,जिसमें श्रृंगार भी किया जाए तो किसी के ना
देश की संस्कृति और सभ्यता की ,
जीवन है रंगमंच कलाकार हम सभी
" वाई फाई में बसी सबकी जान "
आँखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा,
तेरी आँखों की जो ख़ुमारी है