एक ही कहानी
हर तरफ से ओढ़ा दी गई परेशानी है,
वर्किंग हो या नहीं सबकी एक ही कहानी है।
समाज की समझ का भला क्या कहें ?
अपने हिसाब से बात हमें बनानी/मनवानी है।
चलाते हैं अपनी, अपने ही अनुसार,
समानता की बात बिल्कुल बेमानी है।
वो समझें चाहे कुछ भी कैसे भी ?
छोड़नी तो हमें अपनी ही निशानी है।
हर तरफ से ओढ़ा दी गई परेशानी है,
वर्किंग हो या नहीं सबकी एक ही कहानी है।।