एक ललकार
परमात्म को ढूँढते हो!
आत्म तो भान कर
समल मन को लेकर
निर्मल तन ढूँढते हो !
सम्मान का ध्यान नहीं
फिर अपमान क्यों हुआ?
ये भी सोचते हो
सर्व-हित इच्छा न की!
फिर स्व-हित सोचते हो
जीवन पर्यन्त सीखा नहीं
तो सीखाना सम्भव कैसे?
न समझा ही कभी
तो फिर समझाना कैसे?