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11 Oct 2024 · 1 min read

हंसी / मुसाफिर बैठा

हंसी अन्य वजहों से लगती है
और गुदगुदी लगने लगाने से भी

एक हंसी हमारी वह भी हो सकती है
जो हमारे संभावित हत्यारे
हमारी हत्या करने से पहले
हममें रोप जा रहे हों
शोले के मशहूर डायलॉग – कितने आदमी थे
के कुछ ही संवादों के बाद गब्बर सिंह
अपने तीनों नाकाम आदमियों को
हंसा हंसा कर गोलियों से भून डालता है

अपने विरोधियों के लिए
हमारे लोकतंत्र का संभावित हार से डरा
हर शासक भी
ऐसी ही हंसी पालता है।

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