एक रोचक खबर
आपको एक रोचक खबर बताता हूं। ख़ुद बता रहा हूं, इसलिए शर्म और संकोच भी हो रहा है क्योंकि यह अहं जैसा भी आपको झलक सकता है।
बहरहाल, बताऊं कि ’पद्मश्री’ जैसा ऊंचा सम्मान पाए एक वयोवृद्ध नामी लेखक ने मुझे fb पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजा और मैंने यह अनुरोध स्वीकार नहीं किया, ठुकरा दिया। अनुरोध महीनों यूं ही लटका पड़ा रहा, हार कर उस व्यक्ति ने अपना यह अनुरोध वापस ले लिया।
विचार पर एकदम से विपरीत ध्रुव पर खड़े व्यक्ति को स्वीकारना मेरे लिए बहुत कठिन होता है।
वैसे, ऐसा भी नहीं है कि सभा–सम्मेलनों में उनसे भेंट होती है तो मैं उनसे नज़रें मिलाने या बोलने–बतियाने से कतराता हूं। मिलता हूं उनसे और मिलते–बिछुड़ते अभिवादन भी करता हूं।
उनके वय जनित काफ़ी वरिष्ठता को सम्मान करता हूं।
साहित्य में उनके श्रम के मान–महत्व को समझता हूं, मगर, उस काम का कायल नहीं हूं।
हिंदी और मैथिली साहित्य में उनका बहुत काम और नाम है, लेकिन उनका काम मेरे काम का नहीं है, बल्कि उनका काम मुझे वैज्ञानिक चेतना के विरुद्ध जाकर प्रगतिशील समाज के निर्माण में बाधक भी लगता है, हिंदू दकियानूसी मान्यताओं का संवर्धन करने वाला लगता है।