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13 Feb 2021 · 1 min read

एक मुकम्मल वतन का ख़्वाब

एक मुकम्मल वतन का ख़्वाब

एक मुकम्मल वतन का ख़्वाब लिए जी रहा हूँ मैं

दिल पर पड़ते घावों को सी रहा हूँ मैं

क्यूं कर की लोगों ने इस वतन से गद्दारी

जयचंदों की भीड़ में एक भगत सिंह को ढूंढ रहा हूँ मैं

देश को नोच – नोच कर खा लेने को बेताब हैं कुर्सी के चाहने वाले

राजनीति के गलियारे में एक अदद गाँधी की तलाश कर रहा हूँ मैं

समाज सेवा को कमाई का गोरख धंधा समझने वालों

तुम्हारी भीड़ में एक अदद मदर टेरेसा की तलाश में भटक रहा हूँ मैं

शिक्षा को व्यवसायिक पेशे की उपाधि देने वालों

राधाकृष्णन सा एक हीरा शिक्षा के बाज़ार में खोज रहा हूँ मैं

भटकती युवा पीढ़ी पर पड़ रहा आधुनिकता का प्रभाव

एक अदद विवेकानंद की तलाश में भटक रहा हूँ मैं

भुला दिए हैं जिन्होंने अपनी संस्कृति और संस्कार

उस खुदा के आदिल श्रवण की खोज में भटक रहा हूँ मैं

पीर दिल की नासूर बन कर सता रही है मुझे

उस खुदा के एक अदद बन्दे की तलाश में दर – दर भटक रहा हूँ मैं

Language: Hindi
176 Views
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