दिल की हक़ीक़त
दिल की हक़ीक़त लिखते कहां हैं।
टूटे ना जब तक बिख़रते कहां हैं।।
खुद को समेटे हैं खुद के ही अंदर।
खुद से भी बाहर निकलते कहां हैं।।
तुम्हें आईना हम बना ही चुके हैं।
देखे बिना हम संवरते कहां हैं।।
थोड़े से ज़िद्दी, थोड़े से पागल ।
हम जैसे शायर मिलते कहां हैं।।
बिछड़े जो तुमसे बिछड़ने ना देना।
बिछड़ते हैं जो वो मिलते कहां हैं।।
दिल की हक़ीक़त लिखते कहां हैं।
टूटे ना जब तक बिख़रते कहां हैं।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद