*एक मां की कलम से*
एक मां की कलम से
ऐसी खुशहाली आई है,
प्रसन्नता मन में छाई है।
एक नवजीवन की अभिलाषा,
मैंने अब पाई है।
छोटा सा एक जीव मेरे,
अंगों में आके बिसरा है।
कैसा होगा उसका मुखड़ा,
आशा का अब पहरा है।
जैसे कोरे कागज़ हेतु,
जब-जब शब्द चयन होते।
तब-तब विचार मेरे,
हृदय-हर्ष मग्न होते।
मुझे नहीं इच्छा कि मैं,
बेटा-बेटी में भेद करूं।
मैं तो स्वस्थ नवजीवन की,
मन में अब आस धरूं।
एक मां नहीं जताती भेद,
प्रकृति के उपहार पर।
वह तो बरसाती है ममता,
पेड़ों की छांव की तरह।।
डा प्रिया।।