“एक नज़्म लिख रहा हूँ”
एक नज़्म लिख रहा हूँ,
शब्द अधूरे से लग रहे है,
जज़्बात बिखरे से लग रहे है,
तुम बैठो कभी साथ मेरे चाय पे
तुम्हें देख तुमको अपनी नज़्म में उतार दूँ,
तुम्हारी आँखों की गहराई को नज़्म के ज़ज़्बातों में लिख दूँ,
तुम्हारे काजल को नज़्म के हर एक शब्दों पे सजा दूँ,
तुम्हारी बिंदिया को नज़्म में चमका दूँ,
तुम्हारी होंटो की लाली को नज़्म की धनक बना दूँ,
तुम्हारी चूड़ियों की खनक को नज़्म के पन्नों में खनका दूँ,
तुम्हारे चहरे को नज़्म का दर्पण बना दूँ,
तुम्हारी पायल की छनक को नज़्म का शोर बना दूँ,
तुम्हारे ज़िस्म की खुशबू से नज़्म को महका दूँ,
तुम्हारी घड़ी की सुइयों की तरह इस पल और वक़्त को ना थमने वाला बना दूँ,
तुम बैठो कभी साथ मेरे चाय पे तुम्हें पूरा अपनी नज़्म में उतार दूँ।
“लोहित टम्टा”