एक दीप जलाना तुम
जब अंधकार का साया हो
मन चिंता से भरमाया हो
जब खालीपन हो भरा पड़ा
तब प्यार से मुझे बुलाना तुम
और एक दीप जलाना तुम ।।
जब जमघट छँट जाता है
मन कुंठा से भर जाता है
जब पास न हो कोई मेरे
तब पास मेरे आना तुम
और एक दीप जलाना तुम ।।
जब सन्नाटा इक गहरा हो
और खामोशी का पहरा हो
जब कहने को भी कुछ ना हो
तब गीत खुशी के गाना तुम
और एक दीप जलाना तुम ।।
– चिंतन जैन