एक दिन का महिला दिवस
रोज़ मनने वाला महिला दिवस
एक दिन ख़ास में
क्या ख़ास कर जाता है
अंतर समझिये……
रोज़ पाने वाला प्यार – सम्मान
एक दिन में समेट कर
उपहार में दिया जाता है
और फिर साल भर
एहसान तले दबाया जाता है ,
अरे ! रहने दो मत दो
एक दिन का प्यार
एक दिन का दिखावा
तुम फेंक दो ,
हमारे बिना तुम्हारा घर
घर नहीं होता है
फिर भी उस घर का मालिकाना हक़
तुम्हारा ही होता है ,
हम तो दिखावे की लक्ष्मी हैं
पूरे घर के स्वामी तो तुम कहलाते हो
चाभी हमारे कमर पे लटकती है
पर बैंकर तुम बन जाते हो ,
पूरे ख़ानदान के मान – सम्मान का भार
हमारे कंधे पर डालते हो
अकेले अपना सम्मान शान से उठा कर
बस हमारे सम्मान के बोझ से दब जाते हो ,
हमारा घर तो ना जनम वाला था
और ना ही गठबंधन वाला
लेकिन घर की इज़्ज़त का
देते हो हमको ही हवाला ,
सुना हैं रिश्ते बनाता उपर वाला है
सातों जन्मों का हिसाब – किताब
उसने अपने खाते में डाला है
यहाँ एक जनम तो निभाना मुश्किल है तुमको
कहते हो रिश्ता सात जन्मों वाला है ,
ये सात जन्मों वाला रिश्ता भी तो
हमारे उपवास से मिलता है
तुमको लम्बी उम्र का आशीर्वाद
हमारी भूख प्यास से मिलता है ,
फिर भी हमको तुम समझ नहीं पाते हो
नित नये इल्ज़ाम लगाते हो
साल भर अंधेरे में रख कर
साल के दो दिन चाँद दिखाते हो ,
साल के एक दिन का झूठा आडंबर
झकझोरता नही दिल के अंदर ?
हाँ ! अगर सच में है प्यार और आदर
तो दो ना……कौन मना करता है
पर एक दिन नही रोज़ – रोज़ दो
दिल से जी भर – भर के दो ,
दिया है तुमको मौक़ा
इसको मत जाने दो
खाली घड़ा है प्यार का
इसको भर जाने दो ,
हमको जानने और समझने में ही
तुम्हारी है समझदारी
हमारा क्या है हम तो हैं नारी
तुम्हारी क्या बिसात
हम तो ईश्वर पर भी हैं भारी ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 06/03/2020 )