एक दलित कवि की चरण-वंदना / musafir baitha
हे युवा दलित कवि
अपने कविता-संसार के दूध में
क्यों नींबू निचोड़ गए हो
किसी जिंदा लेखक को
अपनी कुकविता में
महानता की अलंघ्य ऊंचाई पर
इस विरुदावली से, चरण-वंदना से
हड़बड़ी में टांग आकर
फिर अपने किसी अखण्ड भक्त द्वारा ही
पकड़े गए हो तो यह विरुदावली गाते तो
अंदरखाने बिलबिला रहे हो और ऊपर से
सहज सी सफाई में
दलील सड़ी यह
विकल हो देनी पड़ रही है तुझे –
“चरण-वंदना सीरीज रच रहा हूँ अपने लेखकों पर
जिसकी पहली कड़ी है यह”
इत्ती तेल मालिश करोगे बेजगह तो
दिमाग़ गीला ढीला होगा ही
तेल पचेगा नहीं तो
चेलेचपाटे की जुबान तक
फिसल पड़ेगी ही
उस तेल में चिपुड़कर!