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13 Feb 2020 · 1 min read

एक चुंबन भर

अधरों का वो प्रेम मिलन
खूब मुझे तड़पाता है
जब होता हूँ मौन कभी मैं
याद वही पल आता है
जब अधरों को तेरे
मेरे अधर ने
छूआ था थोड़े हौले से
सांसों के भी आवागमन में
तब हुई गर्माहट हौले से
सच कहूँ….
वो सुखद मिलन
दो रूह नही….
दो आत्म मिलन था
ख्वाबों के खिलते तरूवर में
बासंती फूल मधुर तपन था
दो जिस्म जां एक होने को
प्रिये! वो प्रेम निमंत्रण था
अहा! कितना खूबसूरत…..
समर्पित स्नेह आलिंगन था
पर
जड़ वहां एक बंधन था
हाँ
रीति-रिवाज का मंथन था
हम दोनों
ठहरे, पथिक आदर्श
पथ धूमिल न करने वाला
पुण्य, प्रेम एक मंज़िल जो
मंज़िल अपवित्र न करने वाला
वो चुंबन….
एक चुंबन तक छोड़े
बस, प्रेम मिलन का……
पद चिन्ह छोड़े
***************
– राहुल कुमार विद्यार्थी
13/02/2020

Language: Hindi
1 Like · 654 Views
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