एक चिंगारी से “आदित्य” बनाने आया हूँ
घट में मेरे प्राण रहे ना रहे
तरकश में मेरे बाण रहे ना रहे
हाथों में मेरे प्रमाण रहे ना रहे
इस युद्धभूमि में कर्ण सा
केवल अपना वचन निभाने आया हूँ
एक जुगनू होकर भी मैं यहाँ दिव्य दिनकर से टकराने आया हूँ।
जीवन में मेरे शान रहे ना रहे
सोच में मेरे ध्यान रहे ना रहे
अंगों में मेरे जान रहे ना रहे
इस दुनिया में स्टीफेन हाकिंग सा
केवल कर्तव्य का बोध कराने आया हूँ
एक चिंगारी होकर भी मैं ब्रह्मांड में नया”आदित्य”बनाने आया हूँ।
माथे में मेरे चंदन रहे ना रहे
होठों में मेरे वंदन रहे ना रहे
आचरण में मेरे अभिनंदन रहे ना रहे
इस धरा में स्वामी विवेकानंद सा
केवल ज्ञान की गंगा बहाने आया हूँ
एक बूंद जल का होकर भी मैं सागर की प्यास बुझाने आया हूँ।
मृत्यु में मेरे विलंब रहे ना रहे
कालचक्र में मेरे अवलंब रहे ना रहे
श्वांस में मेरे स्वालंब रहे ना रहे
इस सम्पूर्ण जीवन में अब्दुल कलाम सा
केवल मानवता का पाठ पढ़ाने आया हूँ
एक मानव होकर भी मैं भगवान का साक्षात स्वरूप दिखाने आया हूँ।
राष्ट्र में मेरे उद्गार रहे ना रहे
भारत के मन में मेरे विचार रहे ना रहे
अखबार में मेरे समाचार रहे ना रहे
इस भारत की माटी में भगत सिंह सा
केवल देशधर्म पर अपनी बलि चढ़ाने आया हूँ
एक अकिंचन होकर भी मैं देशप्रेम की प्रचंड आग लगाने आया हूँ।
रक्त में मेरे प्रवाह रहे ना रहे
सबके मुख में मेरे लिए वाह रहे ना रहे
हृदय में मेरे शेष आह रहे ना रहे
इस मृत्युलोक में सरदार गुरु गोविंद सा
केवल शौर्य का विजय परचम फहराने आया हूँ
एक तीतर होकर भी मैं स्वयं को बाज से आज लड़ाने आया हूँ
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर, छ.ग.