एक खामोश तस्वीर
जब जिन्दा थी
तब भी खामोश रहती थी
अब एक तस्वीर में समा गई
तब भी खामोश हो
बेशक हम दोनों के बीच
भाषा का संवाद ज्यादा नहीं था पर
तुम्हारी आंखें तो बोलती थी
तुम्हारे पास बैठकर
तुम्हें देख सकती थी
तुम्हें स्पर्श कर सकती थी
तुम्हारी उपस्थिति महसूस कर सकती थी
अब मैं तस्वीर को दिन में
कई कई बार देखती हूं
इसे छूती हूं पर
वह अनुभूति नहीं होती
काश तुम अभी कुछ समय और
मेरे साथ रहती
इतनी जल्दी तो एक तस्वीर में
तब्दील न होती।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001