एक आरजू
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एक आरजू है मेरे दिल की दिलबर चले जाना।
हो सके तो इस दिवाली पर घर चले आना।
बुझी हुई है जो तुम बिन मेरे मन की ज्योति,
रौशनी वफा से करने प्रियवर चले आना।
मेरे मन के चाँद अमावस काली रात में,
शीतल निर्मल सी किरणें लेकर चले आना।
चिर प्रतीक्षा में प्रिय जगती रही मैं रात दिन,
सातों जनम का वादा निभाने चले आना।
विरह वेदना की पीड़ा अब सही ना जाये।
गहन संताप की ज्वाला हरने चले आना।
व्याकुल मेरी आँखें एक तेरे दर्शन को,
विचलित चित में नव आश जगाने चले आना।।
????-लक्ष्मी सिंह ?☺