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23 Nov 2023 · 1 min read

अंतिम

जीवन अंतिम काया अंतिम
अपना और पराया अंतिम
मुँह में बूँदे कुछ गंगा जल की
तुलसी दल का खाया अंतिम

अंतिम क्षण में मौन अधर
भाव भंगिमा तितर -बितर
छूट गयी अंतिम क्षण में
अपने जीवन की सारी फ़िकर
चला चली बस होने चली
यम का भी ये सताया अंतिम
मुँह में बूँदे कुछ गंगा जल की
तुलसी दल का खाया अंतिम

मानव ने पाया क्या खोकर
हासिल हुआ क्या जग का होकर
जले देह बेनाम सी तट पर
बांस से मिले अपनों का ठोकर
आग लगाए तन को आखिर
पहला या फिर जाया अंतिम
मुँह में बूँदे कुछ गंगा जल की
तुलसी दल का खाया अंतिम

मोह – पाश में उलझा सा मन
हुआ बुढ़ापा खोकर यौवन
साथ में कोई चले न जग से
जोड़ा था फिर क्योंकर कण – कण
हो जा हरि का अब भी समय है
जीवन की कर दे माया अंतिम
मुँह में बूँदे कुछ गंगा जल की
तुलसी दल का खाया अंतिम
-सिद्धार्थ गोरखपुरी

Language: Hindi
Tag: गीत
3 Likes · 1 Comment · 497 Views
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