एक अनार, सौ बीमार
बड़ी प्रचलित है ये लोकोक्ति
एक अनार और सौ बीमार
भटका रहा सबको दर बदर
नंगे पांव अपने पीछे रोज़गार।
भविष्य की चिंता में डूबे
शिक्षा की डिग्री हाथ में ले के
आज असंख्य युवा अभ्यर्थी
रोज़गार आगे है लाचार सभी।
सौ बीमारों की इस भीड़ में
कौन समझे ये दर्द की कश्ती
भटकते हैं युवा रोज़ सफर में
काम की तलाश में हर दिन।
पर रोज़गार के भाव बड़े है
युवा सभी कतार में खड़े है
एक अनार और सौ बीमार
यही आज का यथार्थ सत्य।
लेकिन उम्मीद है अभी भी
यह तस्वीर एक दिन बदलेगी
जब रोजगार के अवसर बढ़ेंगे
उज्ज्वल होगा युवा भविष्य।
— सुमन मीना (अदिति)
लेखिका एवं साहित्यकार