एक अनपढ़ का किस्सा (लघुकथा)
एक अनपढ़ का किस्सा ( लघुकथा )
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उस अधेड़ आयु के व्यक्ति ने किस्सा सुनाना शुरू किया । सुनाने में रस ऐसा था कि जितने लोग वहाँ थे ,सब पास में आकर बैठते गए और सुनते रहे । एक भी व्यक्ति उठकर नहीं गया ।
आधे घंटे तक उसने किस्सा सुनाया और अंत में जब किस्सा समाप्त हुआ तो वाह-वाह की आवाजों से वातावरण गूँज उठा । एक श्रोता ने पूछा “क्यों भाई साहब ! क्या आप मनोविज्ञान में पीएचडी किए हुए हैं ?”
वक्ता ने कहा “मैं तो अनपढ़ हूँ। केवल लोगों के चेहरों को पढ़कर कहानी- किस्से बना लेता हूँ।”
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लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा रामपुर( उत्तरप्रदेश)
मोबाइल 99976 15451