ऋतुराज
आज धरा भी भाव विभोर है,
चारो तरफ छायी हरियाली है,
पतझड़ के सूखे पेड़ो पर,
फिर गूंजी किलकारी है।।
कोयल राग सुरों का छेड़े,
तितली भौरों की कव्वाली है,
इंद्र धनुष में धरा रँगी है,
ऋतुराज के स्वागत की तैयारी है।।
माँ शारदा की वीणा से,
सरगम की लहरें निकल रही,
जमी बर्फ पर्वत शिखरों पर,
पानी बन नदियों में पिघल रही।।
तोड़ रही हैं सूरज की किरणें,
अकड़ी हुई अपनी अंगड़ाई को,
तारे भी आँखे खोल देख रहे हैं,
ऋतुराज के स्वागत की तैयारी को।।
आम खुशी में बौराया है,
पगला महुआ कुचियाया है,
अंगूरों में शहद भर रहा,
तरबूज-खरबूज की तैयारी है।।
ऋतुराज के स्वागत की तैयारी है…..
prAstya………(प्रशांत सोलंकी)