उस बूढ़े पेड़ के तने से
जैसे जैसे
समय बीत रहा है
मेरे तो मन के धागे
उस बूढ़े पेड़ के तने से
और अधिक तेजी से
लिपटे जा रहे हैं
मेरे प्रेम का रंग तो
दिन प्रतिदिन
और ज्यादा प्रगाढ़ होता जा
रहा है
मेरे सपनों के आंगन में तो
वह हर रात ही खेल रहा है
मेरी रग रग में
लहू बनकर दौड़ रहा है
दिल में धड़कन सा
सांसों की तार पर
एक चिड़िया सा फुदक रहा है
मेरी तो हर सुबह
हर दोपहर
हर सांझ
रात्रि का हर प्रहर
मेरे जीवन का हर एक पल
बस उसके नाम
इस दुनिया को छोड़
वह जा चुका लेकिन
मेरी दुनिया तो उसी की यादों से
आबाद है
कानों में गूंजता रहता है
उसकी सुरीली तान छेड़ती
आवाजों का शोर
शबनमी अहसासों की डाली से
सरक जाती है
ओस की बूंदों की जैसे
कोई जानी पहचानी तो
कभी अंजानी सी भोर
मैं शाम तक
तिनका तिनका समेटती रहती हूं
उसके बनते बिगड़ते पदचिन्हों के
निशानों के तोड़
रात को
अपना आंचल फैलाकर
करती हूं दुआ कि
ख्वाबों में उसे उतार देना
जैसे वो सामने खड़ी
एक जीती जागती तस्वीर हो
न हो इसके सिवाय
दूजा कोई और।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001