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7 Oct 2021 · 1 min read

उस नन्हे मुन्ने परिंदे मे भी जान थी ऐ दोस्त

उसकी भी जिंदगी थी पहचान थी ऐ दोस्त
उसका भी अपना जहाँ था शान थी ऐ दोस्त

जिसको खाया है तुमने बढ़े चाव से तलकर
उस नन्हे मुन्ने परिंदे मे भी जान थी ऐ दोस्त

निशाना हम लगाते ये कैसे मुमकिन था बता
तुम्ही पे तीर थे तुम्ही पे कमान थी ऐ दोस्त

जो कातिल था वो ही मालिक था सराय का
उस पर ही हम लोगों की अमान थी ऐ दोस्त

मकान बनाने वालों को क्यों मुजरिम ठहराऐं
जगह ही तिरछी थी उसमें कान थी ऐ दोस्त

कहाँ बसाता बेघर मायूस परिंदो को”आलम”
एक इमारत थी ओर वो भी दान थी ऐ दोस्त
मारूफ आलम

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