उस नन्हे मुन्ने परिंदे मे भी जान थी ऐ दोस्त
उसकी भी जिंदगी थी पहचान थी ऐ दोस्त
उसका भी अपना जहाँ था शान थी ऐ दोस्त
जिसको खाया है तुमने बढ़े चाव से तलकर
उस नन्हे मुन्ने परिंदे मे भी जान थी ऐ दोस्त
निशाना हम लगाते ये कैसे मुमकिन था बता
तुम्ही पे तीर थे तुम्ही पे कमान थी ऐ दोस्त
जो कातिल था वो ही मालिक था सराय का
उस पर ही हम लोगों की अमान थी ऐ दोस्त
मकान बनाने वालों को क्यों मुजरिम ठहराऐं
जगह ही तिरछी थी उसमें कान थी ऐ दोस्त
कहाँ बसाता बेघर मायूस परिंदो को”आलम”
एक इमारत थी ओर वो भी दान थी ऐ दोस्त
मारूफ आलम