उल्लाला छंद
सवित किरण जगमग भयी,
हलचल मची है पनघट।
जगत नियन्ता खोल दो
मनमोहन अब नयन पट।
मुरली अधरन साजती,
गल बैजंती माल है।
मोर मुकुट मोहक छवि,
वह गिरधर गोपाल है।
कदम्ब तले रास सजी,
नृत्य कर रही गोपियाँ।
मुरली सौतन सी डटी,
अधर बैठी साँवरिया।
रक्षित जन-जन को किया,
उंगली टेका परवत।
व्याप्त कष्ट चहुंदिश है,
हर लो पीर सकल जगत ।
रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
©