*उर (कुंडलिया)*
उर (कुंडलिया)
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#उर में देखा झाँककर , किसने अंतर्नाद
चला जगत यह यंत्रवत ,दुख के दो दिन बाद
दुख के दो दिन बाद ,रही पीड़ा अनजानी
जग ने सौंपे शब्द , सांत्वना भरी कहानी
कहते रवि कविराय ,न लौटा जीवन सुर में
जो भीतर का घाव ,लगा कब सूखा उर में
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रचयिता : रवि प्रकाश ,
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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उर = हृदय ,मन ,छाती