उर की पीड़ा
??उर की पीड़ा??
मेरे उर की पीड़ा हर लो ठाकुर जी,
कृन्दन मैं आहत हृदय मेरा बांके जी,
आंखों में निर्झरणी हे बहती,
नयना तरसे दरश को में रातों को रोती,
विरहन को आकर समझा दो
आकर मुरली मधुर बजा दो।
रग रग में हे प्यास तिहारी,
पथ में तेरा दिन रात निहारी,
अंखियां इक टक राह देखती,
पलकें पल भर बंद ना करती।
झलक दिखे ठाकुर की मेरे,
मिले चैन ह्दय को मेरे,
जीवन सफल बना लूं अपना,
ठाकुर जी से नेह लगा के,
दर्शन तो हे इक सपना।
सांवल मोहनी सूरत पे दिल आया,
जो राधा के मन बहुत लुभाया,
दुनिया जिसकी हे दिवानी,
सारा जगत हे जाने,
कृष्ण राधा कि प्रेम कहानी।।
सुषमा सिंह उर्मि