उम्मीद
#दिनांक:-5/5/2024
#शीर्षक:-उम्मीद
हाँ निस्वार्थ था मेरा प्रेम
तुमने समझने में भूल की,
मुझमें घुलने की जिद की,
मुझे आजमाने की चाह की,
चुनौतीपूर्ण राह की….!
आह….!
क्यूँ तोड़ा मेरा भरोसा,
क्यूँ दिल को चोटिल किया,
क्यूँ जताया ‘हम तुम्हारे है’,
क्यूँ भावना को आहत किया….!
उफ्फ….!
कैसे सहन करूँ दिल की चीखे,
समन्दर हुई आँखों में जलन,
किसी की सुन पायी नहीं,
तुमको सुना पायी नहीं,
कैसा लगाव था तेरा,
तेरा दिया घाव,
तुमको ही दिखा पायी नहीं….!
सुनो….!
तेरी बाते हमे सताती है,
तेरी रुसवाई हमे खलती है,
बैरी कहूँ या हरजाई पिया,
अभी भी,
उम्मीद में दिन-रात साँसें चलती है….||
रचना मौलिक, स्वरचित और सर्वाधिक सुरक्षित है|
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई