उम्मीद
सुनते आये अक्सर लोगों से हम ,
उम्मीदों पर ही है दुनिया कायम।
उम्मीद का दामन मत छोड़ना ,
इसी के होंसलों से ज़िंदा हैं हम ।
चाहे जिंदगी में घना अँधेरा हो ,
एक चिराग तो रोशन हो हरदम ।
तकदीर खेले चाहे कितने भी खेल ,
उम्मीद के सहारे तो जीतेंगे हम ।
अपने दुश्मनों औ रकीबों से कह दो ,
तुम्हारे गुरूर से जा! नहीं डरते हम।
अपने ख्वाबों को अश्कों के सैलाब में ,
कब तलक बहने देंगे आखिर हम।
उम्मीद पर गर दुनिया है कायम,
तो कैसे छोड़ देंगे इसका दामन हम !
उम्मीद-ए-नज़र रखकर ख़ुदा पर ,
एक रूहानी रिश्ता उससे बनाते हम।
मगर घबरा जाए जब नादां दिल ,
नाकामयाबी पर उसे दिलासा देते हम ।
जीना ही है ‘अनु’ तो चलो ! यही सही !!
ज़िंदा लाश बनकर तो जी नहीं सकते हम ।