उम्मीद को जगाए रखो
सपनों को तराशने लगे हम यूं ही फिर धीरे से कहीं कानों में उम्मीदों ने जगाया बस यूं ही पहाड़ों से डरकर यूं पिछे मत हट क्यों कि पहाड़ों के किनारे ही बसा है समुद्र तट। यूं ठोकरें खाते हुए डर जाया नहीं करते हैं मंजिल भी उन्हें ही मिलती है जो मन में उम्मीदें जगाये रखतें एवं साथ ही साथ जिनके हौसले सदैव बुलंद होते हैं