उपासना के निहितार्थ
उपासना
‘नृप’ का पर्याय है
समस्त विद्याओं का
और गुप्त रखने योग्य भावों का भी.
यह समर्थ है
उस ब्रह्म का दर्शन कराने में
जो परमपिता है.
उपासना
निकट पहुँचाता है
ब्रह्म के परम भाव के
सानिध्य दिलाता है
ब्रह्म के
एकत्वभाव से.
यह ब्रह्म, परमेश्वर, सर्वशक्तिमान है कौन ?
यह ‘क्रतु’ है,
यज्ञ, स्वधा, औषध, मन्त्र, घृत
अग्नि और हवन भी यही है
सर्वव्यापी है
समाया है समस्त भावों में
वह तपता है,
वर्षता है
‘अमृत’ भी है,
सत्-असत् भी
और सबसे बढ़कर
‘जीवन-मृत्यु’ भी.
उसका चिन्तन
उपासना
आधार है
‘योगक्षेम’ के वहन का.
उसके पूजक
प्राप्त होते हैं
उसे ही
उसी मात्रा में.
उपासना
समाहित कर देता है
सर्वशक्तिमान में
एकत्व में
जो नियंता है
संसार का
प्रकृति का
और समस्त जीवों का