उन लम्हों को..
कैसे भूल जाऊँ
उस लम्हे को
जब तुम ने सर रख कर
मेरे कांधे पर जन्मों जन्म
साथ रहने का वायदा किया था,
मेरी आँखों में
डाल कर अपनी आँखे
कसमें खायीं थी…
कैसे भूल जाऊँ
मैं उस लम्हे को भी
जिसमें तुमने भुला दिया था
हर कसम हर वायदे को
भुला दिया था,
मेरी बेपनाह चाहत को
और अपने गुरूर की आंच में
छोड दिया था
तुमने मुझे लम्हा लम्हा
जलने को
कैसे भूल जाऊँ मैं…..
हिमांशु Kulshrestha